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Monday, 24 October 2016

ज्ञान गंगा के बेग से मीरा बाबा ने ढहा दी जाति व मजहब की दीवार

तीन दिवसीय उर्स आज से जुटे जायरीन
                      न हो आराम जिस बीमार को सारे जमाने से,
                        उठा ले खाक थोड़ी सी इनके आस्ताने से।
उपरोक्त पंक्तियां ही भियांव स्थित हजरत सैय्यद मीरा मसऊद हमदानी के पवित्र आस्ताने की महत्ता के लिए काफी है। जिनकी दरगाह पर लगने वाला तीन दिवसीय वार्षिक उर्स पारम्परिक रश्मों के साथ मंगलवार से आरम्भ हो रहा है। इस मेले में दूर दराज के हजारों लोग शिरकत करेंगे। जिसकी सारी तैयारियां पूर्ण कर ली गयी है। पवित्र आस्ताने के साथ साथ पूरे दरगाह परिसर को आकर्षक ढंग से सजा दिया गया है। उर्स शुरू होने की पूर्ण संध पर ही दरगाह परिसर श्रद्धालुओं से खचा खच भर चुका है। इंतजामिया कमेटी के अनुसार तीन दिवसीय इस उर्स के पहले दिन 25 अक्टूबर को प्रातः कुरान ख्वानी और रात में जश्न अजमते अवलिया होगा। जबकि दूसरे दिन 26 अक्टूबर को गुस्ल मुबारक, जुलूसे गंागर, कुल शरीफ के बाद रात मे महफिले समा आ आयोजन होगा। अंतिम दिन 27 अक्टूबर को तबर्रूकात की तकसीम के साथ रात में महफिले समा के साथ उर्स का समापन होगा।
 अम्बेडकरनगर जनपद की जलालपुर तहसील क्षेत्र के भियांव गांव में स्थित हजरत मीरा मसऊद हमदानी (मीराबाबा) की दरगाह आज लाखों लोगो की श्रद्धा आस्था व अकीदत का केन्द्र बनी हुई है। बने भी क्यांे न....। मीरा बाबा ने यहीं रहकर अपने जीवन काल में अपनी आध्यात्मिक शक्तियों और ज्ञान गंगा के बेग से जाति व मजहब की संकीर्णता भरी दीवार को ढहाकर आवाम को मानवता का संदेश दिया था। आज जब वे भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं है उनकी कृपा से यहां की मिट्टी और पानी रोगियों और प्रेत बाधा से पीड़ित लोगो के लिए अचूक औषधि बना हुआ है।
वास्तव में समय समय पर हर युग और हर काल में जिन्दगी के असल उद्देश्यों से भटके इंसान को सच्ची राह पर लाने के लिए महापुरूषों के रूप में तमाम सूफी संतो का अवतरण हुआ है। मीरा बाबा भी उन्हीं सूफी संतो में एक है जिन्होंने सामाजिक बुराइयों के खात्में के लिए आजीवन संघर्ष किया। हालाकि उनका जन्म भारत भूमि पर नहीं हुआ मगर यहां की उर्बर मिट्टी ने उन्हें इतना प्रभावित कि वे बादशाहत को ठुकराकर भारत आये और यही के होकर रह गये। जानकार बताते है कि मीरा बाबा का जन्म ईरान देश के हमदान नामक राज्य में हुआ था। मजहब के प्रति समर्पित परिवार ने इन्हें मजहवी संस्कार में पाला और उसी आधार पर अच्छे गुरूओ के माध्यम से शिक्षा प्रदान करायी। आगे चलकर वे हमदान शहर के शासक बनाये गये। कुछ ही दिनांे में उन्हंे वहां ढेर सारी शोहरत मिल गयी। मगर मीराशाह ने जनता पर शासन करने के बजाय इस्लाम का प्रचार और पीड़ित मानवता की सेवा करना बेहतर समझा। इसी कड़ी में उन्होंने एक दिन हमदान की बादशाहत त्याग दिया और दुनिया के प्रमुख रूथलों के भ्रमण पर निकल पड़े।
बताया जाता है मदीना, दमिश्क और बगदाद के तमाम प्रमुख स्थानों पर काफी समय बिताने के बाद हजरत मीराशाह अनेकों सिद्धियां प्राप्त करके इस्लाम के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब के आस्ताने की कत्लगाह कर्बला के मैदान गये जहां किसी अज्ञात शक्ति से मिले आदेश के तहत दरिया-ए-फरात पार करके हिन्दुस्तान आ गये। यहां आकर पंजाब व मुल्तान में उन्होंने देखा कि एक कुप्रथा के तहत मुसलमानों द्वारा लड़कियों का गला घोटा जा रहा है। इसके विरूद्ध वहां के मुसलमानों को उन्होंने अपनी ज्ञान गंगा के प्रवाह से जागृत किया। उन्होंने बताया जिसे लोग प्रथा के नाम पर अपनाए है वास्तव में उसका इस्लाम में कोई स्थान नहीं है। इसका विरोध करने के नाते उन्हंे लोगो के आक्रोश का शिकार भी होना पड़ा। इसके बाद मीराबाबा में भारत के कई अन्य स्थानों पर जाकर लोगो को मानवतावाद का संदेश दिया। मानवता का सार्वभौमिक संदेश देते हुए मीरा बाबा वर्तमान के अम्बेडकरनगर के भियांव आये और यहां से लोगो को उपदेश दिया। तत्समय वह एक घने जंगल के रूप में जाना जाता था।
चूंकि अब वे उम्र के अंतिम पड़ाव पर इसलिए यही उन्हांेने जीवन का सर्वाधिक समय बिताया। धीरे धीरे इनके नाम की चर्चा क्षेत्र में फैली। विभिन्न असाध्य रोगो से पीड़ित लोगो का जमावड़ा होने लगा और लोगो को इसका लाभ भी मिला। यहां की मिट्टी बदन पर लेपने और यहां के कुएं पर स्नान करने के बाद लोगो को रोगो से मुक्ति मिलने लगी। कालान्तर में मीरा बाबा का जब इंतकाल हुआ तो पूरा इलाका दुखी हो गया। इनकी पक्की मजार यही बनी और इनका आस्ताना आज लोगो की श्रद्धा का केन्द्र बना है। यहां वर्ष में दो मेला लगता है। उर्स में मुसलमानों की तादात अधिक रहती है और अगहनियां में हिन्दुओं की संख्या अधिक रहती है। इसलिए इस मेले को साम्प्रदायिक सौहार्द के रूप मंे भी स्थान मिला। तीन दिवसीय उर्स मेला कल मंगलवार से प्रारम्भ हो रहा है। जिससे उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालु बाबा की मजार पर चादर चढ़ाएंगे।
लाखों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र बन चुके यह आस्ताना प्रशासनिक उपेक्षा का दंश भी छेल रहा है। जहां बाहर से आये जायरीनों को ठहरने के लिए रैन बसेरे व शौचालय के बेहतर इंतजाम अब तक नहीं हो सके है। आवागमन के नाम पर निजी वाहन श्रद्धालुओं से मनमाना किराया वसूलते है। दूसरी तरफ ठहरने के लिए कमरों के किनाये भी आसमान छू रहे है। यही नहीं यहा आने वाले मार्ग भी अतयन्त बदहाल स्थिति में है। जिस पर किसी की नजर नहीं आ जा रही है।
प्रस्तुति- घनश्याम भारतीय 

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