अम्बेडकरनगर एक परिचय
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के नाते पूरी दुनिया में ख्यातिलब्ध फैजाबाद जनपद से 29 सितम्बर, 1995 को विभाजित होकर नये जिले के रूप में अस्तित्व में आये अम्बेडकरनगर की धरती साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक गतिविधियों को सदैव केन्द्र रही है। अपने स्थापना के महज 21 वर्ष में ही जिले ने तमाम कीर्तिमान स्थापित किये हैं। उत्तरीय अक्षांश और पूर्वी देशांतर पर स्थित यह जिला समुद्र तल से 108.8 मी0 की ऊंचाई पर अवस्थित है। पवित्र सरयू और तमसा के तट पर बसे इस जिले का कुल क्षेत्रफल 2 हजार 520 वर्ग किमी0 है। जिसमें 23 लाख 98 हजार 709 लोग निवास करते हैं। जहां साक्षरता का प्रतिशत 74.37 है। कुल 3955 गांवों वाले इस जिले को विकास के दृष्टिकोण से 9 ब्लाकों में विभाजित किया गया है। जिले का मुख्यालय अकबरपुर है जो पवित्र सलिला तमसा के तट पर बसा हुआ है। यह तमसा नदी शहर को शहजादपुर और अकबरपुर दो भागों में बांटती हुई बहती है। जिले की उत्तरी सीमा सरयू को भी छूती है।
फैजाबाद मण्डल में शामिल इस जिले में कुल पांच तहसीलें और पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। साथ ही तीन नगर पालिका और दो नगर पंचायत भी है। इस जिले को समाजवाद के पुरोधा डा0 राम मनोहर लोहिया की जन्म स्थली होने का जहां गौरव प्राप्त है वहीं जिले के पूर्वी छोर पर स्थित सिद्ध पुरूष महात्मा गोविन्द साहब जी महाराज का आध्यात्मिक संदेश पूरे देश में गूंज रहा है। इसके अलावा किछौछा स्थित हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी की दरगाह और श्रवण क्षेत्र में स्थित मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार की समाधि स्थली के साथ साथ पवित्र स्थल शिवबाबा लोगों की श्रद्धा और आस्था का केन्द्र भी है। इसी के साथ यहां की उर्वर माटी में जनमे तमाम साहित्यिक सामाजिक और सांस्कृतिक तथा राजनैतिक गतिविधियों से जुड़े लोगों ने हमेशा राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रोशन किया है।
प्रमुख धार्मिक स्थल
गोविन्द साहब
जिले की पूर्वी सीमा पर स्थित महात्मा गोविन्द साहब जी महाराज की तपोस्थली देश भर में श्रद्धा और आकर्षण का केन्द्र है। जहां प्रति वर्ष अगहन मास के शुक्ल पक्ष के दशमी को श्रद्धालुओं का सैलाब उमडता है। लाखों लोग अपने कष्ट निवारण के लिए गोविन्द सरोवर में डूबकी लगाकर समाधि के दर्शन और मंदिर की परिक्रमा कर खिचड़ी चढ़ाते हैं। यहीं से शुरू हुआ गोविन्द साहब का मेला पूरे एक माह तक भारी गहमा गहमी के साथ चलता हैं। समूची मानवता को सदमार्ग पर चलने की सीख देने वाले महान संत महात्मा गोविन्द साहब जी महाराज का जन्म जलालपुर कस्बे में भारद्वाज गोत्रीय सरयू पारीण ब्राह्नण कुुल में संवत 1782 के अगहन मास शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ था। भुड़कुड़ा गाजीपुर स्थित गुलाल साहब के आश्रम में भीखा साहब से दीक्षित महात्मा गोविन्दसाहब जी महाराज सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का बीजारोपण कर संवत 1879 के फाल्गुन कृष्णपक्ष एकादशी को अपने भक्तों को अंतिम उपदेश देकर ब्रह्नलीन हो गये। आज उनकी समाधि स्थली पर भव्य मंदिर और इसी से सटा गोविन्द सरोवर लाखों लोगो की श्रद्धा व आस्था का केन्द्र बना है।
श्रवण क्षेत्र
मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार की समाधि स्थल श्रवण क्षेत्र आज लोगों के आस्था का केन्द्र हैं। मडहा और बिसुही नदी के संगम पर स्थित इस धार्मिक स्थली के बारे में कहा जाता है कि त्रेता युग में मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार अपने माता पिता को कांवर में बैठाकर चारो धामों का दर्शन कराने हेतु जा रहे थे कि इसी बीच माता पिता को गहरी प्यास लगी। प्यास को तृप्त करने के लिए श्रवण कुमार नदी में पानी भरने गये जहां राजा दशरथ ने शब्द भेदी बाण छोड़ दिया। जिससे श्रवण कुमार की वहीं पर मौत हो गई। इसी स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई जो आज लाखों लोगों की श्रद्धा व आस्था का केन्द्र है। इसी स्थान पर अगहन मास की पूर्णिमा को मुख्य स्नान पर्व के साथ मेला शुरू होता है। जो पूरे पांच दिनों तक चलता है। इस पवित्र स्थल से सम्बन्धित तमाम वृतांत विभिन्न धार्मिक पुस्तकों के अलावा राम चरित मानस में भी मिलता है।
किछौछा-
फैजाबाद आजमगढ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित बसखारी बाजार से लगभग तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित रसूलपुर में स्थित है सूफी संत हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी की दरगाह। जो भारत ही नहीं अपितु दुनिया के तमाम देशों में मसहूर हैं। उनके आस्ताना यानि समाधि की जियारत करने के लिए देश विदेश से लोग भारी तादात में आते है। यहां साल में एक बार उर्स और एक बार अगहनिया मेला लगता है। यहां दरगाह शरीफ के चारो ओर एक गोल तालाब है जिसके पवित्र जल को नीर शरीफ कहा जाता है। इसी तालाब के मध्य किला नुमा गोल चहर दीवारी है जो लगभग 40 फिट ऊची है। इसी किला नुमा स्थान के मध्य मखदूम साहब का रौजा-ए-मुबारक स्थल हैं जो एक छोटे से द्वीप की परिकल्पना को साकार करता है। यहां करोडों लोगों की आस्था जुडी हुई है।
हजरत मखदूम साहब के बारे में मौजूद दस्तावेजों के अनुसार उनका जन्म मौजूदा समय में इरान के सिमनान नामक कस्बे में हुआ था। माता पिता से मिले संस्कारों ने अल्प समय में ही बाबा मखदूम साहब को ज्ञानवान बना दिया। जिसका विस्तार करने के लिए वे भारत आये और फिर यही के होकर रह गये। बताते है कि उन्होंने दुनिया को नई दिशा देने के लिए बादशाहद को भी ठोकर मार दी थी। भारत मंे आने के बाद देश के विभिन्न हिस्सो में रह कर लोगो को उपदेश देते हुए जीवन के अंतिम क्षण में वे किछौछा आये जहां से उन्होंने मानवतावाद की बीजा रोपण किया। उनके द्वारा स्थापित भाईचारे और प्रेम मोहब्बत का बिरवा आज बिशाल बट वृक्ष का रूप ले चुका है।
शिवबाबा
अकबरपुर फैजाबाद मार्ग पर जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर स्थित शिवबाबा एक धार्मिक स्थान है जो राज्य के पर्यटन मानचित्र पर चमक रहा है। सीहमई कारीरात गांव में स्थित यह धार्मिक स्थल लोगों की श्रद्धा और आस्था का केन्द्र बना हुआ है जहां प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को श्रद्धालुओं का रेला उमडता है और लोग शिवबाबा का दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु मनौती मानते है। इस धार्मिक स्थली के बारे में प्रसिद्ध है कि यह जिस सीहमई कारीरात गांव में स्थित है वह गांव पूरी दुनिया का एक ऐसा गांव है जहां लोगों के घरों में दरवाजे नहीं लगते।
अम्बेडकरनगर के गौरव-
जिले की माटी विभिन्न क्षेत्रों में काफी उर्वर रही है। चाहे वह साहित्य का क्षेत्र हो अथवा समाज सेवा का समय समय पर यहां की धरती पर एक से एक होनहार पैदा हुए हैं। जिन्होंने अपने कार्यों की बदौलत प्रदेश ही नही देश दुनिया में जिले का नाम रोशन किया है। ऐसे तमाम लोग जिले के गौरव हैं उनमें से कुछ निम्नवत है:-
धर्मबीर बग्गा
साम्प्रदायिक एकता और आपसी सौहार्द के प्रतीक बन चुके प्रसिद्ध समाजसेवी धर्मबीर सिंह बग्गा आज किसी परिचय के मोहताज नही ंहै। बिना किसी शक के उन्हें जिले का गौरव कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि अब तक उन्होने पूरे 530 गरीब व असहाय बेटियों की शादी अपने निजी खर्च पर करा चुके है। साथ ही 39 लावारिस व असहाय लोगों के शवों के अंतिम संस्कार जैसे सराहनीय कार्य भी करा चुके है। महज 47 वर्ष की अवस्था में धर्मबीर बग्गा ने जो कुछ किया है वह निश्चित रूप से उन्हें आदमी से इंसान बना देता है। इस पुनीत कार्य के लिए धर्मबीर बग्गा को कई बार सम्मानित किया जा चुका है।
साम्प्रदायिक एकता के लिए मसहूर टाण्डा कस्बे के निवासी श्री बग्गा शादी के दौरान वे बेटियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए घर-गृहस्ती के सभी जरुरी सामान देकर बिदा करते रहे हैं। जिले के अलावा उन्होंने हरियाणा के कर्नाल सहित अमृतसर व लखनऊ में भी सामूहिक विवाह आयोजन कर चुके हैं। उन्हें अब कुछ लोग पानी वाले बाबा की तरह शादी वाले बाबा कह कर पुकारने लगे हैं। अपने पिता बाबू करतार सिंह की प्रेरणा और मां तारा बहन के आर्शीवाद से प्रेरित होकर समाज सेवा का बीडा उठायें धर्मबीर बग्गा ने अब गरीब लोगों को दोनो वक्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए अपने निजी कोश से भोजन बैंक की भी स्थापना कर दी है। जिसे आजीवन चलाते रहने का उन्होने संकल्प लिया है। इसी के साथ उन्होंने मरणोपरांत जरूरतमंदों के लिए देहदान की घोषणा भी कर दी है।
अरविन्द यादव
टाण्डा तहसील के आसोपुर निवासी अरविन्द यादव भी किसी परिचय के मोहताज नहीं है मैराथन की दौड में अपना जलवा विखेर कर कर उन्होंने जिले के साथ साथ देश का नाम रोशन किया है। दौड में तो उन्हें महारथ ही हासिल है लम्बी दौड में उन्हे जो सुकून मिलता है वह किसी अन्य खेलों में नहीं मिलता। अरविन्द यादव वास्तव में अंबेडकरनगर के गौरव है। 2004 में पूना में आयोजित एसिया क्रास कन्ट्री रेस में सिलवर मेडल जीत चुके अरविन्द यादव ने 2006 में जार्डन में आयोजित मैराथन दौड में भाग लिया और 2010 मे बग्लादेश में सेफ गेम में भारत की तरफ से शिरकत की इसके अलावा चीन मलेशिया व हागकाग में आयोजित प्रतियोगिताओं में भी अपना जलवा बिखेरा है। 2007 में आन्ध्र प्रदेश में आयोजित आल इण्डिया यूनिवर्सिटी लेवल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत चुके है। इसके अलावा 2010 में रायपुर मैराथन जीत हासिल कर एक लाख रूपये का पुरस्कार जीता। इसी के साथ इसी वर्ष इलाहाबाद मैराथन गौल्ड मेडल भी हासिल किया। निश्चित रूप से अरविन्द यादव जिले के गौरव है।
फुरकान अहमद
टाण्डा ब्लॉक के ग्राम पुन्थर में जन्मे सैय्यद फुरकान अहमद समाज सेवा के क्षेत्र में देश भर में जाने जाते है। पिता सैय्यद मोहम्मद अहमद के मुम्बई में सरकारी नौकरी में होने की वजह से आगे की शिक्षा इन्होंने मुम्बई में ही ग्रहण किया यही से उनका मन समाजसेवा की तरफ बढ़ चला। समाजसेवा के लिए पहले इन्होंने राजनीती का रास्ता अख्तियार किया लेकिन जब इन्होंने देखा कि राजनीति बडी गंदी हो चली है तो सभी राजनिति से नाता तोड़ते हुए खुद अपने कुछ युवा साथियो के साथ समाजसेवा करने के लिए जुट गए और उन्होंने साहस फाउन्डेशन के नाम एक सामाजिक संस्था की शुरुआत किया। सबसे पहले इन्होंने मुम्बई में फैले नशे को खत्म करने का निर्णय लिया और ड्रग माफियाओ की तमाम धमकियों के बाद भी बहुत से ड्रग माफियाओ को पकड़वा कर पुलिस के हवाले की और जब तक मुम्बई सेन्ट्रल से ड्रग माफियाओ का नामो निशान खत्म नहीं हो गया यह युवा अपने मिशन में डटा रहा। इसके आलावा समाज में फैले नुकसान वाले मुद्दों को उठाकर कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया। इसके साथ ही इनकी संस्था के द्वारा यातयात नियमो के लिए चलाये गए अभियान देश के प्रधानमंत्री की तर्ज पर युद्ध स्तर पर सफाई अभियान के साथ ही इनकी संस्था द्वारा पूरी मुम्बई में सड़को पर हुए गड्ढे भरने के लिए सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए सेल्फी विथ गड्ढा कार्यक्रम की शुरुआत की। संस्था द्वारा मुम्बई की गरीब जनता को राहत पहुँचाने के लिए जितने भी कार्यक्रम चलाये गए उन्हें अपार जनसमर्थन हासिल हुआ। मुम्बई में अम्बेडकरनगर का यह नवजवान छाया हुआ है।
अरूणिमा सिन्हा
पदम श्री अरुणिमा सिन्हा पर आज जिले को नाज है। क्योंकि उन्होंने एवरेस्ट को फतह करने वाली दुनिया की पहली विकलाग महिला होने का गौरव हासिल किया है। जिला मुख्यालय के शहजादपुर कस्बे में जन्मी अरूणिमा सिन्हा को १२ अप्रैल २०११ को लखनऊ से दिल्ली जाते समय उसके बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना पैर गंवा बैठी थी। जिसके बाद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए २१ मई २०१३ को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (२९०२८ फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया। ट्रेन दुर्घटना से पूर्व उन्होने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राज्य की वॉलीबाल और फुटबॉल टीमों में प्रतिनिधित्व किया है। एवरेस्ट के अलावा उन्होंने कई और उची चोटियों को फतह किया है। इसी बीच उन्हें पदम श्री एवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। जो जिले के लिए किसी गौरव से कम नहीं है।
0 comments:
Post a Comment